Thursday, November 10, 2011

\'\'जब आतंकी हमले में शहीद होते हैं जवान तो मानवाधिकार कहां\'\'

नई दिल्ली(10/11/11)(Tehelkanews)

एजेंसी

कानून तोड़ने वालों के मानवाधिकारों का सवाल उठाने वालों को फटकारते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अचरज जताया कि कोई आतंकी वारदात में जान गवांने वाले सुरक्षाकर्मियों, भूख से मरने वालों और आत्महत्या करने वाले किसानों के मानवाधिकारों का जिक्र क्यों नहीं करता।जस्टिस जीएस सिंघवी और एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने कहा कि मानवाधिकार हनन कुछ लोगों का विशेषाधिकार नहीं है बल्कि यह हिंसा के शिकार लोगों और वंचित तबकों के लिए भी हैं। सितंबर 1993 में आतंकी हमलों के सिलसिले में फांसी की सजा से दंडित पंजाब के आतंकी देवेंदर पाल सिंह भुल्लर की याचिका पर बेंच ने यह टिप्पणी की है। इसमें भुल्लर ने अपनी दया याचिका पर फैसले में आठ साल का समय लगाने को चुनौती दी है। हमले में नौ लोग मारे गए थे।

बेंच ने कहा, हिंसा के शिकार लोगों की मनोदशा क्या होती है? संसद की सुरक्षा करते हुए कई सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई। उनको एक दिन में भुला दिया गया। इस मामले में भी नौ लोगों की मृत्यु हो गई और 29 घायल हो गए। क्या किसी ने उनकी भावनाओं को जाना? उनके मानवाधिकारों का क्या? कोर्ट ने यह टिप्पणी भुल्लर के वकील केटीएस तुलसी की दलील पर की। तुलसी ने कहा था कि दया याचिका पर निर्णय में इतना समय लगाना मुजरिम के साथ क्रूरता है। वकील द्वारा मृत्युदंड के खिलाफ पूरे विश्व में निर्मित हो रहे जनमत का जिक्र करने पर बेंच ने कहा कि हां , हमारा देश बहुत दयालु है। यहां बहुत से लोग भूख से मर जाते हैं। किसानों ने आत्महत्या की है। उनके मानवाधिकारों का क्या?

बेंच ने यह भी सवाल किया कि दया याचिका पर सरकार का विलंब करना क्या मृत्युदंड टालने का आधार हो सकता है? इसके पूर्व केंद्र सरकार ने कहा था कि दया याचिका के निपटारे की कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती।




News From: http://www.7StarNews.com

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